हिमालयी संस्कृतियों के समागम में बिखरी लोकनृत्यों व गीतों की छटा

 देहरादून। उत्तराखंड राज्य स्थापना दिवस समारोह निनाद 2025 में हिमालयी राज्यों का संस्कृति समागम अपने चरम पर है। समारोह के सातवें दिन भी ओपन थिएटरर हिमालयी संस्कृति से गुलजार रहा। जिसमें उत्तराखंड सहित जम्मू कश्मीर के कलाकारों ने अपने लोकविधाओं के रंग बिखेरे। कार्यक्रम का शुभारंभ उत्तराखंड संस्कृति निदेशालय के उपनिदेशक आशीष कुमार ने दीप प्रज्ज्वलित कर किया। वीर शिरोमणि महाराणा प्रताप थारू उत्थान समिति ने सत्यम शिवम सुंदरम का गायन किया। उसके उपरांत थारूओं की मरी होली की प्रस्तुति हुई। सुरेंद्र राणा बाउरी लोकगीत दल जौनसार के कलाकारों ने तांदी गीतों व नृत्यों की प्रस्तुति दी। मोहन पांडे आंचल कला केंद्र हल्द्वानी के कलाकारों ने हिट कौशली मेरी गाड़ी में गीत पर चांचरी नृत्य प्रस्तुत किया।
महिलाओं के चक्रव्यूह मंचन ने किया भाव विभोर
सातवें दिन पहले सत्र की सबसे आकर्षक चक्रव्यूह मंचन रहा। डॉ.कृष्णानंद नौटियाल के निर्देशन में केदार घाटी मंडाण सांस्कृतिक ग्रुप गुप्तकाशी ने यह प्रस्तुति दी। जिसमें खास बात यह रही कि सभी पात्रों का अभिनय महिलाओं ने किया। डॉ.नौटियाल ने बताया कि महिला पात्रों को लेकर इस प्रयोग का यह तीसरा मंचन है। चक्रव्यूह में सधे हुए गायन के साथ पांडवों और कौरवों के रूप में महिला पात्रों ने शानदार अभिनय किया। ग्रुप के नरेंद्र सिंह रौथाण ने केदारघाटी में चक्रव्यूह व कमलव्यूह मंचन की इस विधा की ऐतिहसिक जानकारी दी। इस दौरान डॉ.नौटियाल ने संस्कृति विभाग को अपनी पुस्तक भेंट की।
कश्मीरी संस्कृति झलक दिखी
हिमालयी राज्यों के इस समागम में कश्मीरी लोकसंस्कृति की झलक भी दिखी। जम्मू कश्मीर नाट्यरंग ग्रुप ने पहले डोगरी जटगना पारंपरिक प्रस्तुति दी। डोगरी जटगना नृत्य असल में जगरवा या जागरण डोगरी नृत्य है, जो जम्मू क्षेत्र का एक पारंपरिक लोक नृत्य है, जिसे अक्सर विवाह समारोहों में किया जाता है और इसमें आमतौर पर महिलाओं का समूह नृत्य करता है। यह नृत्य दूल्हे की शादी से संबंधित उत्सवों के दौरान एक आकर्षण होता है। इसके बाद ग्रुप के कलाकारों ने रउफ नृत्य प्रस्तुत किया, जो रमजान के समय महिलाओं का एक पारंपरिक नृत्य है। अपर सचिव संस्कृति प्रदीप जोशी ने सभी मेहमान कलाकारों को स्मृति चिन्ह भेंट कर सम्मानित किया।
परिचर्चा- हिमालयी खान पान और विरासत
खान पान किसी भी संस्कृति का अहम हिस्सा हैं। हिमालयी राज्यों के सांस्कृतिक समागम निनाद के परिचर्चा सत्र में इसी हिस्से पर बात हुईं। खान पान के प्रख्यात विशेषज्ञ इतिहासकार प्रोफेसर पुष्पेश पंत ने आहार संस्कृति के विभिन्न आयामों पर महीन जानकारियां दी। मंच पर उन्होंने हिमांशु दरमोड़ा के साथ परिचर्चा में उच्च हिमालय, मध्य हिमालय और तराई के खान पान और उसके इतिहास को लेकर कई रहस्य खोले। उन्होंने पूरे दुनिया के पहाड़ों में खान पान की संस्कृति की समानताओं पर प्रकाश डालने के साथ ही उनके अंतर को भी बताया। इस दौरान प्रोफेसर पंत ने दर्शकों की शंकाओं का निवारण करने के साथ ही सवालों के जवाब भी दिये। प्रोफेसर पंत की मौजूदगी का लाभ उठाने के लिये होटल मैनेजमेंट संस्थानों के छात्र और खान पान में रूचि रखने वाले लोग बड़ी तादाद में मौजूद रहे। अंत में संस्कृति सचिव व महानिदेशक युगल किशोर पंत ने प्रो. पंत को शॉल व स्मृति चिन्ह भेंट कर सम्मानित किया।

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