- देश दुनिया में विख्यात शास्त्रीय संगीत के मशहूर गायक देबोरशी भट्टाचारजी के गीत और संगीत से गुल-गुलज़ार हुआ विरासत
- विरासत की महफिल में आज के मुख्य अतिथि मुख्य सचिव उत्तराखंड आनंद वर्धन रहे
- सुप्रसिद्ध विश्व विख्यात महिला सितार वादक अनुपमा भागवत का शास्त्रीय संगीत गायन बना विरासत की शाही शान
- “सुरमणि” की उपाधि यूं ही नहीं मिल पाई….. विश्व विख्यात सितार वादक अनुपमा भागवत को
देहरादून: विरासत साधना में गुरुवार को भिन्न-भिन्न अनेक स्कूली बच्चों द्वारा वाद्य संगीत पर की गई आकर्षक एवं शानदार प्रस्तुतियों से निकले भक्ति रस ने सभी को आनंदित कर डाला I विरासत महोत्सव की आज की विरासत संध्या में प्रतिभाग करने वाले भिन्न-भिन्न स्कूलों के बच्चों ने अपनी प्रतिभाओं का शानदार प्रदर्शन करके सभी का दिल जीत लिया I वाद्य संगीत से विरासत साधना का पंडाल मधुर और सौम्या हुआ I डॉ. भीमराव अंबेडकर स्टेडियम में आयोजित किए जा रहे विरासत महोत्सव की सुबह की पारी में नियमित रूप से हो रही विरासत साधना में आज जिन प्रतिभावान बच्चों ने प्रतिभाग किया, उनमें कई बच्चों ने बहुत ही शानदार भारतीय संगीत का प्रदर्शन किया I इस अवसर पर देहरादून के विभिन्न प्रतिष्ठित विद्यालयों और संस्थानों से आए विद्यार्थियों ने अपनी वाद्य कला से सभी का मन मोह लिया। प्रत्येक विद्यार्थी ने अपने गुरुजनों और सहयोगियों के साथ मिलकर सुंदर वाद्य प्रस्तुति दी, जिससे वातावरण सुरमय और आनंदमय बना I

विरासत साधना में प्रतिभागी बने इन बच्चों में क्रमशः दून यूनिवर्सिटी से तबला वादक अनिरुद्ध नौटियाल उनके साथ रहे राघव शर्मा,सेंट कबीर एकेडमी से तबला वादक लवकेश प्रकाश उनके साथ रहे अमन निराला, इसी श्रृंखला में क्रमवार पीवाईडीएस लर्निंग एकेडमी से दिपांशु गौर (पखावज) साथ में दीपक कुमार भारद्वाज, तरुण संगीत एवं विचार मंच से आए अभिनव पोखरियाल (तबला) साथ में राघव शर्मा, दून वैली पब्लिक स्कूल के विनायक भारद्वाज (सितार) साथ में दीपक कुमार भारद्वाज मैं अपनी शानदार प्रस्तुतियां देकर सभी का मन मोह लिया I इसके अलावा दून इंटरनेशनल स्कूल के होनहार छात्र मनवीर सिंह ने भी तबले पर तीन ताल का राग देकर सभी को मग्न मुग्ध कर दिया I यही नहीं, द एशियन स्कूल देहरादून से सुखप्रीत सिंह (तबला) साथ में अन्वेश कांत, द ओएसिस से अक्षज गोयल (तबला) साथ में श्विभुषित सिंह, शिक्षणकुर द ग्लोबल स्कूल से विहान जोशी (तबला) साथ में राघव शर्मा, सुरेंद्र संगीत विद्यालय समिति से माही सिंह साथ में राघव शर्मा तथा फाइलफॉट पब्लिक स्कूल से अदिति वर्मा साथ में सार्थक कुमार की प्रस्तुति से विरासत साधना में मधुरलय छाई रही I
तत्पश्चात विरासत साधना की भक्ति रस में डूबी हुई इस शानदार प्रस्तुति में प्रतिभाग करने वाले सभी प्रतिभावान प्रतिभागियों को विरासत रीच संस्था संयुक्त सचिव वह मुख्य आयोजक विजयश्री जोशी ने सम्मानित किया। विजय श्री जोशी द्वारा सभी प्रतिभाशाली बच्चों का उत्साहवर्धन वर्धन किया गया I उनके उत्साहवर्धन और सराहना के अनमोल शब्दों ने कार्यक्रम को और खास बना दिया, जिससे यह सुबह संगीत, परंपरा और प्रतिभा का एक यादगार उत्सव बन चुकी है।
उप्रेती बहनों के गढ़वाली, कुमाऊनी व जौनसारी मधुर गीतों ने मचाई धूम और झूम उठा विरासत का पंडाल
विरासत महोत्सव में आज गुरुवार का दिन भी बहुत ही मधुर और मनमोहक उस समय बन गया, जब उत्तराखंड राज्य की गढ़वाली, कुमाऊनी और जौनसारी संस्कृति को अपने गीतों के माध्यम से इसी राज्य की मशहूर दो उप्रेती बहनों ने अपने मधुर गीतों की बौछार लगा दी I उन्होंने अपनी प्रस्तुति की शुरुआत गणेश वंदना और न्योली से की, जिसमें देवताओं को समर्पित मधुर प्रस्तुतियों के माध्यम से दिव्य आशीर्वाद का आह्वान किया गया I उसके बाद सगुन आखर….. और मंगल गीत….. प्रस्तुत किए गए। उत्तराखंड राज्य के लोक गीतों की शानदार प्रस्तुति विरासत के मंच पर देने वाली उप्रेती बहनों के शानदार प्रदर्शन से विरासत की महफिल सजी हुई दिखाई दी I अंत में छपेली, सधाई गीत, छबीली, छंचुरी, हेनोली, रासो, सांठो – आठों गीत जैसी पारंपरिक गीतों की रचनाएँ प्रस्तुत की गईं, जिनमें से प्रत्येक उत्तराखंड की पहाड़ियों की लयबद्ध और काव्यात्मक सुंदरता को दर्शाती रही। उप्रेती बहनों के संग इस मौके पर सात अन्य प्रतिभाशाली कलाकार शामिल रहे, जिसमे दिनेश कृष्ण हारमोनियम पर, पंडित अजय शंकर मिश्रा तबले पर, राम चरण जुयाल मुरचन और हुड़का पर, राघव गौधियाल बाँसुरी पर, अमित डंगवाल ढोलक पर, रवीन राणा पार्श्व ताल पर, मोहित जोशी कीबोर्ड पर रहकर संगत देते रहे।
दोनों उप्रेती बहनें ज्योति उप्रेती सती और नीरजा उप्रेती उत्तराखंड राज्य की एक खास मानी जाने वाली जोड़ी हैं, जो उत्तराखंड की संस्कृति और भावनाओं पर केंद्रित पारंपरिक और लोक संगीत प्रस्तुत करने के लिए जानी जाती हैं। उन्होंने भारत पर्व और यंग उत्तराखंड सिने अवार्ड्स सहित कई कार्यक्रमों में प्रस्तुति दी है I इन दोनों बहनों का एक यू ट्यूब चैनल भी है, जहां वे संस्कृत श्लोकों और पारंपरिक गीतों की प्रस्तुतियाँ प्रस्तुत करती हैं।
इनमें बड़ी बहन ज्योति उप्रेती सती एक पेशेवर गायिका, संगीतकार और गीतकार है, जबकि छोटी बहन डॉ. नीरजा उप्रेती फिजियोथेरेपिस्ट होने के साथ-साथ मशहूर गायिका भी हैं। उन्हें उत्तराखंड के पारंपरिक गीतों के अपने भावपूर्ण प्रदर्शन के लिए जाना जाता है, जो अक्सर गढ़वाल, कुमाऊँ और जौनसार क्षेत्रों की विरासत और भावना को दर्शाते हैं। उनका संगीत पहाड़ी क्षेत्र की सांस्कृतिक परंपराओं और कहानियों को व्यापक स्तर पर दर्शकों तक पहुँचाने का काम करता रहा है।
देश दुनिया में विख्यात शास्त्रीय संगीत के मशहूर गायक देबोरशी भट्टाचारजी के गीत और संगीत से गुल-गुलज़ार हुआ विरासत
देबोर्शी ने अपने गायन की शुरुआत राग यमन की एक पुरानी बंदिश “संसार में अपना कछू न ही ……से की, जिसने सभी का मन मोह लिया, उनकी अगली रचना उन्हीं की थी, ”तू जग में शरम रख मेरी..” इसके बाद उन्होंने अपने आध्यात्मिक गुरु उस्ताद आमिर खान साहब की एक बंदिश गाई I गायक देबोर्शी भट्टाचार्जी के साथ तबले पर मशहूर शुभ महाराज और हारमोनियम पर पं.धर्मनाथ मिश्रजी ने सभी का मन मोहने वाली शानदार संगत कर सुर संगीत की मधुर महफ़िल बना दी। जबकि तानपुरा पर प्रज्ञा, विवेक मिश्रा और अभिज्ञान भारद्वाज ने संगत दी I
देबोरशी भट्टाचारजी इस युग के एक बहुत ही मशहूर व होनहार संगीतकार हैं। एक संगीत परिवार में जन्मे देबोरशी को संगीत से उनकी माँ रीना भट्टाचार्य ने परिचित कराया।
दस वर्ष की आयु से ही वे उस्ताद पंडित अजय चक्रवर्ती से प्रशिक्षण ले रहे हैं। उन्हें जूनियर और सीनियर दोनों समूहों में पश्चिम बंगाल राज्य संगीत अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया जा चुका है। उन्होंने रवि किचलू पुरस्कार भी जीता है और प्रतिष्ठित राष्ट्रीय छात्रवृत्ति प्राप्त की है।”ख़याल” के लिए एक प्रतिभाशाली स्वर के साथ देबोरशी ने अपने नियमित “रियाज़” के माध्यम से अपनी प्रतिभा को निखारा । वर्तमान में वे अपने गुरु प्रतिष्ठित श्रुतिनंदन के संस्थान में शिक्षक हैं।
उन्होंने कोलकाता के लगभग सभी मंचों पर प्रदर्शन किया है और अक्सर अपने गुरु के साथ मंच पर संगत करते हैं। इस अद्भुत गायक का परिचय इस बात का उल्लेख किए बिना अधूरा रहेगा कि वे एक आकाशवाणी कलाकार भी हैं I वे अक्सर रेडियो और टेलीविजन पर प्रस्तुति देते हैं। ख़ास बात यह है कि उन्होंने “धुन” नामक एक शास्त्रीय फ्यूजन बैंड भी बनाया है। देबोरशी ने श्रुतिनंदन द्वारा जारी एल्बम “गीतिनन्दन-2” में गायन किया है। इस संग्रह में श्रुतिनंदन के नवोदित कलाकारों द्वारा अपने गुरु पंडित अजय चक्रवर्ती के उत्कृष्ट मार्गदर्शन में निर्मित उच्च-गुणवत्तापूर्ण संगीत मौजूद है।
विरासत की महफिल में आज के मुख्य अतिथि मुख्य सचिव उत्तराखंड आनंद वर्धन ने प्रसिद्ध गायक देबोश्री भट्टाचार्जी एवं उनकी टीम के धर्मनाथ मिश्र, पंडित शुभ महाराज, प्रज्ञा, अभिज्ञान भारद्वाज को सम्मानित किया और विरासत की संध्या का शुभारंभ किया I इस अवसर पर रिच संस्था के संस्थापक आर के सिंह, उद्यमी रश्मि वर्धन भी उपस्थित रहे I तत्पश्चात् आज विरासत की महफिल के ख़ास मेहमान मशहूर सितार वादक अनुपमा भागवत द्वारा शास्त्रीय संगीत प्रारंभ किया गया I
सुप्रसिद्ध विश्व विख्यात महिला सितार वादक अनुपमा भागवत का शास्त्रीय संगीत गायन बना विरासत की शाही शान
“सुरमणि” की उपाधि यूं ही नहीं मिल पाई….. विश्व विख्यात सितार वादक अनुपमा भागवत को
विरासत की महफिल में आज गुरुवार का दिन देश-दुनिया में विख्यात शास्त्रीय संगीत की दुनिया में बेहतरीन सितार वादक के लिए मशहूर महिला शख्सियत अनुपमा भागवत के नाम रही I अनुपमाजी अपने गायन की शुरुआत राग बागेश्री में विलंबित तीन ताल के साथ एक अलाप के जोड़ से की इसके बाद झप लम्बे में एक तराना और फिर एक ताल में एक बंदिश की प्रस्तुति दी।
विश्व स्तर पर अपने शास्त्रीय संगीत सितार गायन की कला को प्रकाशमय करने वाली मशहूर महिला शख्सियत को आरएन वर्मा ने नौ साल की उम्र में सितार बजाना सिखा दिया था और मात्र तेरह साल की उम्र में उन्होंने इमदादखानी घराने के प्रमुख गुरु बिमलेंदु मुखर्जी से प्रशिक्षण लेना शुरू किया। उन्होंने ऑल इंडिया रेडियो प्रतियोगिता में प्रथम स्थान प्राप्त किया और उन्हें भारत के मानव संसाधन विकास मंत्रालय द्वारा राष्ट्रीय छात्रवृत्ति भी प्रदान की गई।
वह वर्तमान में बैंगलोर में रहती हैं और उन्होंने अमेरिका, यूरोप के कई स्थानों पर अपनी गायन शास्त्रीय संगीत कला का शानदार प्रदर्शन कर ख्याति प्राप्त की। अनुपमा भागवत गायकी शैली में सितार वादन करती हैं, जो मानव स्वर पर आधारित एक काव्यात्मक और सूक्ष्म रूप से सूक्ष्म शैली है। उनकी तकनीकी निपुणता की दुनिया भर के पारखी लोगों ने सराहना की है। यही मुख्य कारण है कि उन्हें “सुरमणि” की उपाधि से सम्मानित किया गया। उनकी रचनात्मक रचनाओं ने तकनीकी निपुणता और भावपूर्ण काव्यात्मक लय के संयोजन से कई पारखी लोगों का दिल जीत लिया है। उन्होंने कई सम्मान और शाही पुरस्कार भी प्राप्त किए हैं I वह ग्लोबल रिदम और शांति जैसे विश्व प्रदर्शनों का हिस्सा रही हैं। उन्हें ओहायो आर्ट्स काउंसिल (अमेरिका) से कई अनुदान प्राप्त हुए हैं। उन्होंने शास्त्रीय संगीत से संबंधित कई एल्बम भी जारी किए हैं जिनमें कॉन्फ्लुएंस, ईथर, एपिफेनी, कलर्स ऑफ़ सनसेट और सांझ शामिल हैं।