उत्तराखंड में मदरसों के खिलाफ हो रही कार्यवाही का मामला पहुंचा सुप्रीम कोर्ट

  • जमीअत उलमा-ए-हिंद ने खटखटाया सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा
  • सरकार की और से अनावश्यक हस्तक्षेप और भयभीत करने का लगाया आरोप

नई दिल्ली/देहरादून। उत्तराखंड सरकार की और से गैर पंजीकृत मदरसों के खिलाफ की जा रही कार्यावाही को रोके जाने के लिये जमीअत उलमा-ए-हिंद ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की है। जमीअत की और से सुप्रीम कोर्ट में दाखिल की गई याचिका पर
मंगलवार 25 मार्च को सुनवाई हो सकती है।
जमीअत उलमा-ए-हिन्द के प्रेस सचिव मौलाना फज़लुर्रहमान ने बताया कि विगत वर्ष उत्तर प्रदेश में भी इसी प्रकार से मदरसों को बंद करने के आदेश दिये गये थे, जिसके खिलाफ जमीअत ने मौलाना अरशद मदनी के निर्देश पर सुप्रीम कोर्ट में एक अहम याचिका, जिसका नंबर डब्लयू.पी. (सी) 000660/2024 है, 4 अक्तूबर 2024 को दाखिल की थी जिसमें सरकार के सभी दावों को चुनौती दी गई थी, जिसके बाद चीफ जस्टिस वी.आई. चन्द्रचूड़ के नेतृत्व में जस्टिस जे.पी. पारदी वाला और जस्टिस मनोज मिश्रा पर आधारित एक बैंच ने उन सभी नोटिसों पर रोक लगा दी जो विभिन्न राज्यों विशेष रूप से उत्तर प्रदेश सरकार की और से मदरसों को जारी किए गए थे। इसमें कहा गया है कि अदालत की ओर से अगला नोटिस जारी किए जाने तक की अवधि के दौरान इस संबंध में अगर कोई नोटिस या आदेश केन्द्र या राज्यों की ओर से जारी होता है तो इस पर भी नियमानुसार रोक जारी रहेगी।
जतीअत का कहना है कि सुप्रीम कोर्ट की रोक के आबजूद भी उत्तराखण्ड सरकार की और से बिना नोटिस दिये ही मदरसों को सील किया जा रहा है, जो सुप्रीम कोर्ट की अवमानना है।
इसलिए उत्तराखंड में मदरसों के खिलाफ इस असंवैधानिक कार्रवाई पर जमीअत उलमा-ए-हिंद ने मौलाना अरशद मदनी के निर्देश पर उतरखंड में मकतबों और मदरसों, जो केवल मुस्लिम समुदाय के बच्चों को धार्मिक शिक्षा देने के माध्यम हैं, के कार्यों में अनावश्यक हस्तक्षेप और उन्हें लगातार भयभीत करने के हवाले से सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दाखिल की है जिसमें कहा गया है कि हमारे मदरसे और मकतब जो शुद्ध रूप से गैर-सहायता प्राप्त अल्पसंख्यक धार्मिक शिक्षा संस्थाएं हैं, लम्बे समय से बिना किसी सरकारी हस्तक्षेप के अपने मकतब और मदरसे चला रहे हैं। 1 मार्च 2025 से मकतब और मदरसों को सील किया जा रहा है। जब हमने उनसे किसी नोटिस या सरकारी आदेश के बारे में पूछा तो उन्होंने हमें कुछ भी उपलब्ध नहीं किया। केवल मौखिक रूप से निर्देश दिया कि उत्तराखण्ड मदरसा शिक्षा परिषद दोहरादून से गैर-मान्यता प्राप्त मदरसों को धार्मिक शिक्षा देने की अनुमति नहीं है, इसके बाद उन्होंने बिना किसी नोटिस के हमारे मदरसों को सील कर दिया और हमें किसी भी प्रकार का स्पष्टिकरण या आपत्ति करने का अवसर नहीं दिया। याचिका में यह भी कहा गया है कि गैर-मान्यता प्राप्त होने का अर्थ केवल यह है कि हमने अपने मकतबों और मदरसों का उत्तराखण्ड मदरसा शिक्षा परिषद दोहरादून से पंजीकरण नहीं करवाया। हमने उत्तराखण्ड मदरसा शिक्षा परिषद दोहरादून  ऐक्ट 2016 की समीक्षा की है, इसमें कहीं भी यह नहीं लिखा है कि गैर-मान्यता प्राप्त मकतबों/मदरसों को अपने बच्चों को धार्मिक शिक्षा देने की अनुमति नहीं है। दूसरे शब्दों में इस कानून के अंतर्गत मदरसा/मकतब का पंजीकरण अनिवार्य नहीं है। इसके अलावा छात्रों के माता-पिता और अभिभावक भी इस असंवैधानिक हस्तक्षेप के कारण परेशान हैं क्योंकि उनके बच्चों को उनकी इच्छा के अनुसार धार्मिक शिक्षा जारी रखने की अनुमति नहीं दी जा रही, जो कि उनके अधिकारों का भी उल्लंघन है।
इस याचिका में अदालत से यह निवेदन किया गया है कि भारतीय संविधान की धाराओं और सुप्रीम कोर्ट के 21 अक्तूबर 2024 के आदेश की रोशनी में इन मकतबों और मदरसों को शीघ्र पुनः खोलने का आदेश प्रशासन को दें और प्रशासन को यह भी आदेश दें कि वो मकतबों और मदरसों के कार्यों में हस्तक्षेप न करे, क्योंकि संबंधित सरकारी अधिकारियों का यह कार्य न्यायालय की अवमानना के समान है, और यह न्याय के उद्देश्यों का लगातार उलल्लंघन है और कानून के शासन के खिलाफ है। वकील ऑन रिकार्ड फुज़ैल अय्यूबी ने सुप्रीम कोर्ट में यह याचिका दाखिल की है।

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