चमोली ( प्रदीप लखेड़ा )
उत्तराखंड के चमोली जिले में हिमालय की वादियों में विराजमान वंशीनारायण मंदिर 12000 फीट की ऊंचाई पर उर्गम घाटी से लगभग 10किमी की पैदल यात्रा कर पहुंचा जाता है।
वंशीनारायण जहां केवल साल भर में एक ही दिन पूजा होती है नाम से तो लगता है कि कृष्ण का मन्दिर होगा पर यहां भगवान विष्णु चर्तुभुज रूप में जलेरी में विराजमान है साथ ही गणेश तथा वनदेवियों की मूर्ति भी है भगवान शिव व विष्णु का यह अनोखा मन्दिर है ।
कत्युरी शैली में बना मन्दिर सुन्दर पत्थरों को तराश कर बनाया गया है लोक कथाओ के अनुसार पाण्डव इस मन्दिर को इतना बडा बनाना चाहते थे कि जहां से बदरी केदार की एक साथ पूजा हो सके किन्तु निर्माण कार्य रात्रि में ही सम्पन होना था देवयोग से यह पूरा नही हो पाया आज भी भीम द्वारा लाये गये विशाल शिलाखण्ड यहां मौजूद हैं जब वामन अवतार नारायण ने राजा बलि के वचन के अनुसार धरती आकाश नाप लिया तो राजा बलि ने तीसरा पंग अपने सर पर रखने के लिए वामन भगवान से कहा तो पग रखते ही वामन भगवान नारायण राजा बलि के साथ पाताल लोक चले गये और बलि के दरबार में द्वारपाल बन गये इधर नारायण को न पाकर लक्ष्मी परेशान हो गयी तो नारद जी के पास गयी नारद ने भगवान नारायण को पाताल लोक में बलि के दरबार में द्वारपाल होने की बात कही। लक्ष्मी ने नारद से पाताल लोक जाने का अनुरोध किया । नारद लक्ष्मी के साथ पाताल लोक में चले गये देवी लक्ष्मी ने रक्षाबंधन के दिन राजा बलि को रक्षसूत्र बांधा बलि ने देवी लक्ष्मी को वरदान मांगने के लिए कहा तो लक्ष्मी ने पति मांगा जो राजा बलि के दरबार में द्वारपाल बने थे राजा बलि ने देवी लक्ष्मी के पति को मुक्त कर दिया इस दिन वंशीनारण नारायण की पूजा अर्चना मनुष्यों द्वारा की गयी इसलिए इस दिन वर्षभर में रक्षाबंधन के दिन ही पूजा अर्चना होती है।
वंशीनारायण मन्दिर में कलगोठ के ग्रामीण पुजारी होते है जहां भगवान को सत्तू बाडी का भोग लगाया जाता है। इस अवसर पर युवक मंगल दल कलगोठ द्वारा भंडारे का आयोजन किया गया।
