कोर्ट ने राज्य सरकार से मांगी ठोस एसओपी
नैनीताल। उत्तराखंड हाईकोर्ट ने मानव वन्यजीव संघर्ष को लेकर दायर जनहित याचिका पर सुनवाई की। मामले की सुनवाई करते हुए मुख्य न्यायाधीश जी नरेंद्र व न्यायमूर्ति सुभाष उपाध्याय की खंडपीठ ने याचिकाकर्ता से कहा है कि इसको रोकने के लिए भी अपनी तरफ से कोर्ट में अपने सुझाव पेश करें। आज हुई सुनवाई पर याचिकर्ता की तरफ से कहा गया कि पूर्व में दिए गए दिशा निर्देशों पर अभी तक राज्य सरकार ने कोई ठोस एसओपी पेश नहीं की गई। जब से जनहित याचिका दायर की गई है, तब से अब तक 100 ग्रामीण वन्यजीव का शिकार हो चुके हैं। कहा कि अभी तक कितनो लोगों को उसका मुआवजा वन विभाग ने नहीं दिया।
सरकार की तरफ से कहा गया कि पूर्व में जारी दिशा निर्देशों के क्रम में राज्य सरकार ने अनुपालन रिपोर्ट पेश कर दी है। जिस पर कोर्ट ने याचिकाकर्ता से कहा है कि उस अनुपालन रिपोर्ट का जवाब देते हुए अपने सुझाव कोर्ट में पेश करें। जिससे मानव वन्यजीव संघर्ष की घटना कम हो सकें। पूर्व में कोर्ट ने 2 माह के भीतर राजाजी कंजर्वेशन प्लान तैयार करने के साथ ही सरकार को निर्देश दिए थे कि राजस्थान, उत्तर प्रदेश, तमिलनाडु के नेशनल पार्कों से अच्छे प्लान बनाकर उत्तराखंड के लिए बेहतर टाइगर कंजर्वेशन प्लान तैयार करें। ताकि मानव वन्यजीव संघर्ष को रोका जा सके। अब जो अनुपालन रिपोर्ट सरकार की तरफ से पेश की गई वह पर्याप्त नहीं है।
मामले के अनुसार देहरादून निवासी अनु पंत ने जनहित याचिका दायर कर कहा कि नवंबर 2022 में इस मामले की सुनवाई के बाद उच्च न्यायालय ने प्रमुख सचिव वन को दिशा निर्देश दिये थे कि वह मानव वन्यजीव संघर्ष को रोकने के लिए विशेषज्ञों की समिति गठित करें। इस मामले में पूर्व में तत्कालीन प्रमुख वन संरक्षक विनोद सिंघल द्वारा दाखिल शपथ पत्र में केवल कागजी कार्रवाई का उल्लेख था और धरातल पर मानव वन्यजीव संघर्ष को रोकने का कुछ उल्लेख नहीं था। कुछ वर्षों से मानव व वन्यजीव संघर्ष की घटनाएं बढ़ी हैं। जनहित याचिका में कोर्ट से प्रार्थना की गई है कि मानव वन्यजीव संघर्ष पर रोक लगाई जाए और पूर्व में कोर्ट के दिशा निर्देशों का पालन कराया जाए।

