स्पिक मैके द्वारा देहरादून के विद्यालयों में कुचिपुड़ी कार्यशालाएं आयोजित

देहरादून : स्पिक मैके उत्तराखंड भारतीय शास्त्रीय कलाओं को बच्चों तक पहुँचाने के अपने उद्देश्य को निरंतर आगे बढ़ाते हुए राज्यव्यापी वर्कशॉप डिमॉन्स्ट्रेशन (डब्लयूडी) श्रृंखला के अंतर्गत देहरादून ज़िले के सरकारी एवं ग्रामीण विद्यालयों में कुचिपुड़ी नृत्य की विशेष प्रस्तुतियाँ आयोजित कर रहा है। इसी क्रम में प्रख्यात कुचिपुड़ी नृत्यांगना अमृता सिंह ने देहरादून के विभिन्न विद्यालयों में कुचिपुड़ी का विशेष सर्किट प्रस्तुत किया।

आज अमृता सिंह ने जीआईसी खुरबुरा और जीआईसी दोभालवाला में अपने कुचिपुड़ी कार्यशाला–प्रदर्शन दिए, जहाँ विद्यार्थियों ने इस शास्त्रीय नृत्य शैली की भावपूर्ण अभिव्यक्ति, सशक्त तालबद्ध पदचाप और कथात्मक सौंदर्य का अनुभव करा। इसके दौरान छात्रों के लिए एक बेसिक मूवमेंट सत्र भी आयोजित किया गया, जिसमें उनको स्वयं नृत्य के कुछ चरणों को सीखने और अनुभव करने का अवसर मिला।

अमृता सिंह एक प्रतिष्ठित कुचिपुड़ी कलाकार हैं और पद्मश्री डॉ. शोभा नायडू की शिष्या रही हैं। वे अपनी सटीकता, गरिमा और कुचिपुड़ी परंपरा में निपुणता के लिए जानी जाती हैं। उन्होंने उदय शंकर नृत्य महोत्सव, दक्षिणी नृत्य उत्सव, कोणार्क महोत्सव, नालंदा नृत्योत्सव, इंडिया हैबिटेट सेंटर दिल्ली, सोमनाथ मंदिर (गुजरात), तिरुमला का नादनीरजन्म और गुरुवायूर मंदिर जैसे प्रतिष्ठित मंचों पर अपनी प्रस्तुतियाँ दी हैं। हैदराबाद स्थित अपने संस्थान कुचिपुड़ी कलामृत के माध्यम से वे अपने गुरु की परंपरा को आगे बढ़ाते हुए कुचिपुड़ी का प्रचार–प्रसार कर रही हैं।

इस सर्किट की शुरुआत से अब तक अमृता सिंह ने एमकेपी इंटर कॉलेज, आईटी चिल्ड्रन्स अकादमी, जीआईसी मालदेवता, जीआईसी नालापानी, जीआईसी गुज्राड़ा, जीआईसी किशनपुर, जीआईसी पटेल नगर, जीआईसी मेहूवाला, जीजीआईसी राजपुर रोड और जीजीआईसी अजबपुर कलां सहित कई विद्यालयों में रोचक वर्कशॉप डिमॉन्स्ट्रेशन किए। इन कार्यक्रमों में विद्यार्थियों ने प्रस्तुतियों के साथ-साथ व्यावहारिक प्रशिक्षण के माध्यम से कुचिपुड़ी को समझा और सीखा, जिसे लेकर छात्रों में विशेष उत्साह देखने को मिला।

स्पिक मैके उत्तराखंड की यह वर्कशॉप डिमॉन्स्ट्रेशन श्रृंखला उसकी सबसे व्यापक सांस्कृतिक पहुँच पहलों में से एक है। सितंबर 2025 से अब तक स्पिक मैके उत्तराखंड द्वारा राज्य के सभी ज़िलों में 400 से अधिक वर्कशॉप डिमॉन्स्ट्रेशन आयोजित किए जा चुके हैं।

राज्य के हर ज़िले में कई कलाकारों ने वर्कशॉप डिमॉन्स्ट्रेशन आयोजित किए। इस दौरान ओरिंदम चक्रवर्ती ने पिथौरागढ़ में सितार की मधुरता से विद्यार्थियों को परिचित कराया, शुभि जोहरी ने अल्मोड़ा में कथक प्रस्तुत किया, सुधा मुखोपाध्याय ने उत्तरकाशी में ओडिसी, शलाखा राय ने अल्मोड़ा में ओडिसी, हनी उन्नीकृष्णन ने पिथौरागढ़ में मोहिनीयाट्टम, वैदेही कुलकर्णी ने हरिद्वार में कुचिपुड़ी, आम्रपाली भंडारी ने श्रीनगर गढ़वाल में कथक और गुरु राजू ने पिथौरागढ़ में कुचिपुड़ी प्रस्तुत की।

इसके अतिरिक्त, डॉ. पार्थो रॉय चौधरी ने नैनीताल में संतूर, करुणा केतन भक्ता ने पिथौरागढ़ में भरतनाट्यम और विशाल मिश्रा ने उत्तरकाशी में सितार प्रस्तुत कर स्पिक मैके के उद्देश्य को आगे बढ़ाया। कुमाऊँ क्षेत्र में वृंदा चड्ढा (ओडिसी), संगीता दस्तीदार (कथक), स्वर्णमयी बेहरा (ओडिसी), प्रीतम दास (भरतनाट्यम) व चिरस्रोता खुंटिया (ओडिसी) और देहरादून में तीर्था ई. पोडुवाल (भरतनाट्यम) ने प्रस्तुतियाँ दीं।

इसी क्रम में कुमाऊँ क्षेत्र में सयानी चक्रवर्ती (भरतनाट्यम), बागेश्वर में शिखा शर्मा (कथक), पौड़ी गढ़वाल में वैष्णवी धोरे (भरतनाट्यम), श्रीनगर गढ़वाल में सौपर्णिका नांबियार (कुचिपुड़ी), बागेश्वर में अभिश्री प्रियदर्शिनी (ओडिसी), हरिद्वार में शैरी गैरोला (कथक), बागेश्वर में सुजाता गावड़े–सावंत (कथक), बागेश्वर में दिशा देसाई (कथक), हरिद्वार में जुनी मेनन (मोहिनीयाट्टम), श्रीनगर गढ़वाल में तबस्मी पॉल मजूमदार (कथक), श्रीनगर गढ़वाल में अभ्यालक्ष्मी (ओडिसी), नैनीताल में राजश्री होल्ला (कुचिपुड़ी), नैनीताल में कृष्णेंदु साहा (ओडिसी), अल्मोड़ा में रेखा सतीश (कुचिपुड़ी) व त्रिना रॉय (कथक) ने प्रस्तुतियाँ देकर हजारों विद्यार्थियों तक शास्त्रीय नृत्य और संगीत पहुँचाया।

प्रत्येक वर्कशॉप डिमॉन्स्ट्रेशन में कलाकार न केवल प्रस्तुति देते हैं, बल्कि विद्यार्थियों को नृत्य या संगीत की मूलभूत तकनीकों, सरल चरणों और अवधारणाओं से भी परिचित कराते हैं, जिससे सरकारी और ग्रामीण विद्यालयों के बच्चों को भारत की शास्त्रीय विरासत से सीधे जुड़ने का अवसर मिलता है।

इस पहल पर बोलते हुए स्पिक मैके उत्तराखंड की अध्यक्ष विद्या वासन ने कहा, “सितंबर 2025 से अब तक हमारे चैप्टर द्वारा राज्य भर में 400 से अधिक वर्कशॉप डिमॉन्स्ट्रेशन आयोजित किए जा चुके हैं, जिससे यह सुनिश्चित किया गया है कि हर ज़िले तक यह पहल पहुँचे। इन कार्यशालाओं के माध्यम से बच्चों को केवल शास्त्रीय कलाएँ देखने का ही नहीं, बल्कि कलाकारों से सीधे सीखने और उनमें भाग लेने का अवसर भी मिलता है।”

!-- Google tag (gtag.js) -->